हम सब जानते हैं कि संसार में द्वन्द (Duality) है। भला-बुरा, अमीर-गरीब, सुख-दुख, शोषित-शोषक, परन्तु सच्चाई तो यह है कि अस्तित्व त्रिसत्तात्मक (Trinity) हैं वे तीनों शक्तियां हैं, धनात्मक, ऋणत्मक एवं उदासीन।
इसी को वैज्ञानिकों ने अणु को तोड़कर पाया कि तत्व में मूलतः प्रोटान धनात्मक), इलेक्ट्रान (ऋणात्मक), न्यूट्रान (शून्य आवेशित) तीन प्रकार के कण पाये जाते हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए हम जब शूद्र हितैषी महा करुणावान, महानायकों, महान, समाज सुधारकों की गणना करते हैं तो तमाम नाम मस्तिष्क में आते हैं जैसे तथागत बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, कबीर, सन्त रविदास, नानक, ज्योतिबा फूले, पेरियार रामासामी, शाहूजी महाराज, सन्त गाडगे, डा0 अम्बेडकर, स्वामी अछूतानन्द, मान्यवर काशीराम आदि, परन्तु इनमें तीन प्रमुख हैं, आदि समाज सुधारक तथागत बुद्ध, मध्य समाज सुधारक एवं शिक्षा की प्रथम ज्योति जलाने वाले महामना ज्योतिबा फूले एवं अन्तिम समाज सुधारक डा0 बी0आर0 अम्बेडकर जिनकी कि चर्चा अप्रैल माह में की जा चुकी है।
तथागत बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था उनके पिता कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन और माँ महामाया थीं। 563 ई0पू0 पूर्व में वैसाख पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। वे बचपन से ही करुणा की गंगोत्री थे। 16 वर्ष की उम्र में उनका, विवाह यशोधरा नामक लड़की से हुआ था, 29 वर्ष की आयु में राहुल नामक पुत्र पैदा हुआ। वे अति संवेदनशील थे। एक दिन महल से वन महोत्सव कार्यक्रम में जाते हुए एक वृद्ध, एक शव को देखकर वे इतने दुखी हुये कि घर वापस लौट आये और रात में चन्ना सारथी के साथ घोड़े पर अनोमा नदी तक ले जाकर उसे वापस कर दिया और स्वयं पैदल ज्ञान प्राप्ति के लिए 6 वर्ष तक प्रयास करते रहे।
अन्त में 35 वर्ष की आयु में बोधिगया निरंजना नदी के निकट पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें वैसाख पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्त हुआ था, 45 वर्ष के लोगों को दुख मुक्ति के लिये समझाते रहे अन्त में 483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा को उनका निधन कुशीनगर में हो गया था। वैशाख पूर्णिमा के दिन जन्म, वैसाख पूर्णिमा को ही ज्ञान प्राप्ति एवं 483 ई0पू0 बैसाख पूर्णिमा को परिनिर्वाण (निधन) के कारण ही समस्त 37 बौद्ध राष्ट्रों में इस वैसाख पूर्णिमा को त्रिविध पावन पर्व कहते हैं।
तथागत बुद्ध की विशेष शिक्षायें :1. संसार में बिना कारण कुछ भी नहीं होता। यह विचार ही वैज्ञानिकता का आधार है। 2. दुख का कारण हमारी अधिक इच्छायें हैं। 3. जीवन में मध्य मार्ग पर चलकर ही कोई प्रसन्न रह सकता है। 4. जीवन में शीलों का पालन कर नैतिक बने । 5. अपने अनुभव से किसी बात को जानें तभी मानें इस कारण बौद्ध धर्म में अन्धविश्वास पाखण्ड नहीं है तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरपूर है।
महामना फूले की विशेष शिक्षायें :1. समस्त दुख का कारण अविद्या (शिक्षित न होना) है। 2. स्त्री शिक्षा की महती आवश्यकता है क्योंकि बच्चों का पालन पोषण पर माँ का प्रभाव सर्वाधिक है। 3. गुलामी पुस्तक लिखकर पौराणिक देवी देवताओं का खंडन किया है। 4. सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सामाजिक कुरीतियों को समाप्त किया है। 5. जल संरक्षण तथा किसानों की आर्थिक दशा में सुधार पर जोर। अतीत की सरकारों ने उनकी बात यदि मानी होती तो आज रामलीला मैदान में अन्ना हजारे को बुढ़ापे में धरना-प्रदर्शन किसानों की आत्महत्या रोकने हेतु न करना पड़ता।
संविधान शिल्पी बाबा साहब डा0 अम्बेडकर की प्रमुख शिक्षायें :1. समता मूलक समाज स्थापित हेतु जातियों का उन्मूलन 2. समता को महती आवश्यकता मानकर उसी अनुरूप भारतीय संविधान का निर्माण किया। 3. शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो। 4. हिन्दू धर्म को सुधारा नहीं जा सकता है (तभी बौद्ध धर्म) वैज्ञानिक, धर्म को 14 अक्टूबर 1956 को स्वीकारा एवं दूसरों को प्रेरित किया। 5. अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के मध्य गठबंधन होना पिछड़े गरीबों के लिए अति आवश्यक है।
अन्त में आपको जीवन से सफलता (स्वास्थ्य, धन, आनन्द) हेतु उपरोक्त शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने पर जोर देना है एवं दूसरों को प्रेरित करना हैऐसा करके ही भारत महान राष्ट्र बन सकता है।