एक आदमी जीवन भर दाढ़ी की शेव करने पर दस लाख रुपये की बर्बादी करता है।
जहां तक समय की बात है तो कुल मिलाकर शेव करने में एक साल का समय बर्बाद हो जाता है।
एस.आर.अबरोल
मैं जन्मजात कजूंस स्वभाव का प्राणी हूँ अत: हर चीज में कंजूसी करना आपना धर्म समझता हूँ। जान जाए पर धर्म न जाए को ध्यान में रखते हुए मैं हमेंशा कंजूसी की तरकीबों के बारे में सोचता रहता हैंू। एक दिन पहले की तरह मैं प्रात: अपने पड़ोसी तोता राम पहुजा से उस दिन की अखबार मांग कर पढ़ रहा था तो अखबार में छपी एक खबर ने मुझे बड़ा झटका दिया। खबर में बताया गया था कि एक आदमी जीवन भर दाढ़ी की शेव करने पर दस लाख रुपये की बर्बादी करता है। जहां तक समय की बात है तो कुल मिलाकर शेव करने में एक साल का समय बर्बाद हो जाता है। इस खबर को पढ़ कर मुझे अपनी मूर्खता पर रोना आने लगा कि क्यों न मैं समय रहते इस महान दार्शनिक विचार का ज्ञान प्राप्त न कर सका। अब तो जीवन समाप्ती के कगार पर था। फिर भी जो थोड़ी बहुत बचत हो सकती थी उसे करने में कोई बुराई नहीं थी। मुझे लगा कि क्यों न आगे की जाने वाली बचत की गणना कर ली जाए। तैं फिर से तोता राम पहुंचा जी के घर गया और उनसे उनका कैलकुलेटर मांग कर भविष्य में होने वाली बचन का हिसाब लगाने लगा। तोता राम जी की पत्नी एक भली महिला है। बेचारी चाय-नाश्ता ले आई। मना करने पर बोली, "भाई साहिब! दिमागी काम में पता नहीं चलता कि कितना समय लग जाए। पेट को तो भूखा नहीं रखा जा सकता है। तोता राम जी भी दफ्तर में हिसाब-किताब का काम करते हैं। समय पर खाना न खाने से इनका सिर तरबूज की तरह बात विहीन हो गया है।" इतना सुनते ही मेरा दुख और घना हो गया। सिर के बालों की कटाई पर व्यय का तो मैंने सोचा ही नहीं था। मुझे तोता राम की खुशकिसमती पर रंजिश होने लगी। तोता राम के सिर पर बाल न होने से कंघी और तेल पर कोई व्यय नहीं हो रहा था। तौलिया भी सिर चटापट होने से कम घिर रहा था। दिल में टीस उठी कि तोता राम पाहुजा ने कैसी बढ़िया किसमत पाई है।
मैंने झटपट फैसला कर लिया कि न दाढ़ी बनवाऊंगा और न सिर के बाल कटवाऊंगा। इरादे पर अमल करते हुए दो महीने बीत गए। सफेद लम्बी दाढ़ी और सिर पर सफेद बालों से रुप निखर आया। आते-जाते बच्चे, बूढें झुककर नमस्कार करने लगे। जहां अच्छे लोग होते हैं वहां बुरे भी होते हैं। एक पड़ोसी से हमारा यशोगान न देखा गया। उसने पुलिस में शिकायत कर दी कि हमारा चेहरा मोहरा एक दुर्दान्त अपराधी से मिलता है। पुलिस से पिंड छुड़ाने के लिए अपनी पेंशन बुक दिखानी पढ़ी जिसमें हमारी दाढ़ी के साथ फोटो चिपकी हुई थी।
अब लोगों में मेरी अलग ही पहचान बन गई। मैंने इसका लाभ उठाते हुए खादी की धोती कुर्ता पहनना शुरु कर दिया। इसमें भी खासी बचत होने लगी। कपड़ों पर प्रैस करवाने का व्यय समाप्त हो गया।
बढ़ी हुई दाढ़ी मेरे लिए अब एक वरदान से कम नहीं थी। मैं सन्यासी के रुप में जाना जाने लगा। मैंने तो अपना नाम नहीं बदला परन्तु लोग मेरी पीठ पीछे मुझे किसी विशेष नाम से पुकारने लगे। अचानक मेरे चमत्कारों की चर्चा होने लगी। बच्चे, बूढे, यूवा, स्त्रियां-पुरुष मेरे पैर छू कर आर्शीवाद लेने लगे। मैं खुशी से फूला स समा रहा था। लोग मेरी बातें सुनने के लिए बेचैन रहते। लोग मुझसे अपनी समस्याओं के हल पूछने लगे। ज्यादातर लोग अपने परलोक के बारें में पूछते थे। सभी बेझिझक कहते कि हमने भ्रष्टाचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। हमें अपने परलोक की चिंता हो रही है। अगर परलोक में भ्रष्टाचार करने का अवसर न मिला तो जीना कठिन हो जायेगा। कृपया कोई ऐसा बीज मंत्र दे दो जिसका नियमित रुप से पाठ करते रहने से परलोग में भी भ्रष्टाचार की सुविधा प्राप्त होती रहे।
अब धीरे-धीरे मुझे संयासियों की ऐश्वर्य भरी जिंदगी का एहसास होने लगा। मुझे अपने आप पर गुस्सा भी आता कि इतने सालों तक मेरे दिमाग में दाढ़ी बढ़ाने का विचार क्यों नहीं आया। अब तो शहर में कोई आयोजन, गोष्ठी, विवाह हो तो मुझे निमंत्रण अवश्य दिया जाता है। कुछ उपहार भी दिये जाते हैं। मुठ्ठि में दक्षिणा भी दी जाती है। चुनावों के समय तो गजब हो जाता है। निगम पार्षद, विधायक, सांसद कह कुर्सी प्राप्त करने के इच्छुक मेरा आर्शीवाद लेना नहीं भूलते। सभी कहते हैं कि स्वामी जी आप ही हमारी नैया पार लगवा सकते हो। कुछ तो भेंट देते समय यहां तक इशारा कर देते हैं कि जीतने के बाद आप को माला माल कर देंगे। मैं उन्हें चुनाव सफलता यज्ञ करने का परामर्श देता हूँ। लगे हाथ पांच-सात रुपये वाली अंगूठी दे देता हूँ। उन्हें समझाता हूँ कि यह चमत्कारी अंगूठी उनको सफलता दिलायेगी।
अब मेरी पहुंच विदेशो में भी होने लगी है। विदेशों में भी मेरे भक्त बनने लगे हैं। फिल्म वाले भी मुझे पूछकर फिल्म का मुहुर्त करने लगे हैं। हीरों-हीरोईने भी मेरे भक्त बन रहे हैं। कौन सी फिल्म चलेगी या पिटेगी यह मेरी भविष्यवाणी पर निर्भर होने लगा है। मैं पूरी दुनिया घूम चुका हूँ। मेरे पास अनेक विदेशी गाड़िया हैं। मेरा आश्रम पूरी तरह से एअर कंडिशन है। मेरा आश्रम राष्टÑपति भवन से बड़ा है। उसमें सुख-सुविधा का सारा साजो समान है। मेरी जिंदगी बड़ी ऐशो आराम से गुजर रही है। मैं अपनी संतान को एक ही बात समझा रहा हूँ कि प्राचीन कवि रहीम जी से शिक्षा लो। रहीम जी के शब्दों को गांठ में बांध लो, "रहिमन दाढ़ी राखियो, बिन दाढ़ी सब सून।"